“मुझे मेरा राजीव लौटा दीजिए मैं वापस लौट जाऊंगी,नहीं लौटा सकते तो तो मुझे इसी मिट्टी में मिल जाने दीजिए'' सोनिया गांधी के यह शब्द उनके उस खत के हैं जो उन्होंने देश वासियों को संबोधित करते हुए लिखा था।
सोनिया गांधी का जीवन किसी फिल्मी कहानी की तरह रहा, इटली के एक छोटे से गांव लुसियाना में जन्मी एक लड़की, दुनिया के दूसरे कोने में बसे देश के प्रधानमंत्री का पद ठुकरा देती है। लगभग 10 साल तक जिसने भारत जैसे विविधता से परिपूर्ण देश में गठबंधन चलाया और देश के विकास में भी योगदान दिया।
यह कहानी शुरू होती है भारत की आजादी के करीबन 8 महीने पहले, 9 दिसंबर 1946 को उत्तरी इटली के एक छोटे से गांव लुसियाना में स्टेफिनो माइनो और पाउलो मायनों के यहां एक लड़की का जन्म होता है। जन्म के समय किसी ने अपनी उच्चतम कल्पना में भी न सोचा होगा कि एक दिन यह लड़की इतनी शक्तिशाली हो जायेगी।
कैथोलिक परिवार में जन्मी सोनिया अपनी दोनों बहनों के साथ बड़ी होने लगी। उनकी रुचि नई भाषा सीखने में और साहित्य पढ़ने में थी, अपनी इस रुचि के कारण वह 1964 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में बेल शैक्षणिक निधि के भाषा विद्यालय में अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त करने पहुंची।
शर्मीले स्वभाव वाली सोनिया की मुलाकात यहां एक ग्रीक रेस्टोरेंट ‘वर्सिटी’ में राजीव गांधी से होती है। मशहूर लेखक राशिद किदवई अपनी किताब में लिखते हैं कि बकौल सोनिया यह दोनों के लिए पहली नजर का प्यार था।
प्यार परवान चढ़ता है और एक साल बाद दोनों इटली पहुंच जाते हैं। सोनिया को अपनी जीवन संगिनी बनाने का मन बना चुके राजीव सीधे उनके पिता से उनका हाथ मांग लेते हैं।
कैथोलिक पिता को यह पसंद नहीं आता है तो वह दोनों के सामने एक शर्त रख देते हैं कि आप दोनों एक दूसरे से एक साल दूर रहिए और तब भी शादी करने की इच्छा हो तो शौक से करिए। बकौल सोनिया यह वक्त दोनों के लिए ही बहुत मुश्किल भरा रहा।
सोनिया के परिवार से मिलने के बाद प्रधानमंत्री बन चुकी इंदिरा गांधी से मिलने की बारी थी ।
सकुचाई सी सोनिया ब्रिटेन दौरे पर आईं इंदिरा से जब मिलती हैं तो इंदिरा गांधी उनकी हिचकिचाहट को समझते हुए उनसे फ्रेंच में ही बात करती हैं।
1968 में सोनिया पहली बार अपने भविष्य के देश यानि कि भारत आती हैं। फ्लाइट सुबह की थी तो राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन उन्हें लेने पहुंचते हैं और सुबह ही उन्हें दिल्ली की कई जगहों पर घुमाते हैं। इंदिरा गांधी से मिलने के बाद वह अमिताभ बच्चन के घर पहुंच जाती हैं, क्योंकि भारतीय परंपरा के अनुसार कोई होने वाली बहू अपनी ससुराल में शादी के पहले नहीं रुक सकती, तो सोनिया अमिताभ बच्चन के घर रुकती हैं।
1, सफदरजंग पर नेहरू के हाथों की बुनी हुई साड़ी को पहनकर सोनिया भारत की बहू बन जाती हैं।
समय पंख लगाकर उड़ चला था उनके घर में एक लड़का और एक लड़की का जन्म होता है नाम रखा जाता है राहुल और प्रियंका। राजीव पायलट थे और सोनिया ग्रहणी, सोनिया का वैवाहिक जीवन भी सुखमय बीत रहा था। इसी बीच देश में इमरजेंसी भी लगायी जाती हैं सोनिया और राजीव इसके खिलाफ थे। 1977 के चुनाव में जब इंदिरा हार के बाद अपने बड़े से प्रधानमंत्री आवास को छोड़ एक छोटे से घर में रहने आई तो यहां सास बहू के बीच संबंध गहरे होते गए। इस समय सोनिया को कई बार खान मार्केट में सब्जी लेते हुए भी देखा जाता था।
दिन बदलते देर नहीं लगती, जून 1980 में राजीव के छोटे भाई और राजनीति में सक्रिय संजय गांधी की मृत्यु हो जाती है। राजनीति में इंदिरा को सहारा देने वाला कोई चाहिए था सोनिया राजी नहीं थी पर राजीव अपनी मां के लिए राजनीति में आ जाते हैं।
संजय की मौत के बाद धार्मिक हो गई इंदिरा ने जब व्रत रखना शुरू किया तो सोनिया ने उनका पूरा ध्यान रखा और उनके साथ व्रत भी किए। 1983 में सोनिया ने भारत की नागरिकता भी ले ली।
1984 में जब इंदिरा गांधी को गोलियों से छलनी कर दिया गया तो सोनिया खून में लथपथ प्रधानमंत्री को लेकर अस्पताल पहुंचती हैं। प्रधानमंत्री की हत्या के बाद जब राजीव को प्रधानमंत्री बनाने की बात आई तो सोनिया ने राजीव से पद स्वीकार न करने की बहुत गुजारिश की, पर राजीव ने इसे देश और समाज के प्रति कर्तव्य कहकर स्वीकार कर लिया।
करीब 7 साल बाद सोनिया का अंदेशा सही साबित हुआ। श्री पेरंबदूर में चुनावी सभा करने के दौरान राजीव गांधी की हत्या कर दी जाती है। सोनिया सोने जा चुकी थी तभी जार्ज आते हैं और उन्हें यह मनहूस खबर देते हैं। सुनते ही सोनिया की तबियत खराब हो जाती है।
सास और पति दोनों को राजनीति के कारण खोने वाली सोनिया, कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के कई बार कहने के बाद भी राजनीति में आने को तैयार नहीं होती हैं।
नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बनते हैं, सरकार चलती है लेकिन 1996 के आमचुनाव में कांग्रेस चुनाव हार जाती है। कांग्रेसी नेतृत्व लगातार सोनिया को राजनीति में आने के लिए मानते रहे।
सोनिया दिसम्बर 1997 के कलकत्ता पूर्ण सत्र के दौरान कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य बनती हैं और 1998 में प्रणव मुखर्जी के प्रस्ताव पर सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में उन्हें कांग्रेस की अध्यक्षा चुन लिया जाता है।
1999 आम चुनाव में वह अमेठी और बेल्लारी (कर्नाटक) से चुनाव लड़ती हैं और दोनों जगह से जीत जाती हैं। बेल्लारी से उन्होंने भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज को हराया था।
2004 आम चुनाव में जब बीजेपी की जीत पक्की लग रही थी तो सोनिया ने देश भर में प्रचार प्रसार किया और सभी पूर्वाग्रहों से परे जाकर यू पी ए ने अप्रत्याशित सफलता प्राप्त की।
सोनिया का प्रधान मंत्री बनने का रास्ता साफ था गठबंधन के सभी साथी उन्हें ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान कर चल रहे थे। विपक्ष लगातार उनके विदेशी मूल के होने को लेकर हमलावर हो रहा था। भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज और उमा भारती ने घोषणा कर दी कि अगर सोनिया प्रधानमंत्री बनती हैं तो हम सर मुंडवा लेंगे और साध्वी की तरह जीवन व्यतीत करेंगे। राजनीतिक सरगर्मी जोरों पर थी पर सोनिया शांत थी उनके मन में जैसे कुछ और ही चल रहा था।
सदन में खड़े होकर सोनिया ने कुछ ऐसा कहा कि पक्ष से लेकर विपक्ष सब स्तब्ध रह गए।
सोनिया ने कहा कि “ एक बात शुरू से साफ है प्रधानमंत्री बनना मेरा लक्ष्य कभी नहीं था, मेरे सामने यह शुरू से ही स्पष्ट था कि कभी ऐसी स्थिति पैदा हुई तो मैं अंतरात्मा की आवाज सुनूंगी और आज मेरी अंतरात्मा मुझसे कह रही है कि मैं विनम्रता के साथ यह पद स्वीकार ना करूं” कांग्रेसी नेताओं ने सोनिया को मनाने की कोशिश की पर सोनिया अपना मन बना चुकी थी। सोनिया ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के पद पर बैठाया और वह पर्दे के पीछे से ही उनकी मदद करती रहीं। राजनीति की तमाम उठापटक के बीच सोनिया, यूपीए को दोबारा 2009 के आम चुनावों में जीत दिलाने में कामयाब रहीं।
1998 से 2017 तक वह सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस की अध्यक्षा रहीं। यूपीए के 10 साल के शासन काल के दौरान सोनिया गांधी को कई मैग्जीनों ने उन्हें विश्व की शक्तिशाली महिलाओं में से एक माना। अक्टूबर 2007 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया।
अपने राजनैतिक जीवन के दौरान सोनिया पर कई बार विदेशी मूल, जासूस, बारबाला, जर्सी गाय जैसे निजी हमले किए गए लेकिन सोनिया ने कभी इनको अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वह लगातार मेहनत करके चुनाव जीतती रहीं।
सोनिया भारतीय राजनीति की ऐसी नेत्री हैं जिन्होंने तमाम राजनैतिक परेशानियों के बीच गांधी नेहरू परिवार की विरासत को बचाए रखा। उनके शब्दों में कहें तो “ मैंने उन वादों को भी निभाया जो मैंने राजीव से कभी किये भी नहीं थे।“
सोनिया फिलहाल रायबरेली से सांसद हैं आने वाला चुनाव उन्होंने स्वस्थ संबंधी कारणों से नहीं लड़ने का फैसला किया है। उन्होंने राज्यसभा के जरिए राजनीति में आगे बढ़ने का फ़ैसला किया है। आने वाला समय सोनिया गांधी के जीवन की कहानी को कहां ले जायेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना तो तय है कि सोनिया गांधी भारतीय राजनीति का एक अलग ही चेहरा प्रदर्शित करती हैं।
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