शिवराज सिंह चौहान: राजतिलक, मामा और राजनैतिक वनवास

"दिग दिगंत चहुं दिस बसंत शिवराज तुम्हारे शासन में"

कवि की लिखी ये पंक्तियां मध्यप्रदेश के उस मुख्यमंत्री के शासन काल के लिए लिखी गई हैं जिसने अपने शासन काल के दौरान प्रदेश को बीमारू राज्य से एक संपन्न राज्य के रूप में खड़ा कर दिया। शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश की बागड़ोर ऐसे समय में संभाली जब प्रदेश सरकार और बीजेपी की प्रदेश ईकाई राजनैतिक ज्वार भाटे का शिकार थी। 

 इस कहानी की शुरुआत होती है, 5 मार्च 1959 से जब मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के जैत नामक गांव में प्रेमसिंह चौहान और सुंदर बाई चौहान के घर एक लड़के का जन्म होता है, नाम रखा जाता है "शिवराज सिंह चौहान"

पूत के पांव पालने में ही दिखने शुरू हो जाते हैं , शिवराज अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण बचपन से ही लोगों के बीच मे लोकप्रिय रहे। 13 साल की उम्र में वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े। पढ़ाई लिखाई में भी वह तीव्र बुद्धि के थे। स्कूली शिक्षा के दौरान वह मॉडल स्कूल के स्टूडेंट यूनियन के निर्वाचित अध्यक्ष बने।बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी से उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्वर्ण पदक के साथ अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की। इस समय वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सक्रिय सदस्य थे।1975 में लगे राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान विपक्ष के सभी नेताओं को जेल में डाला गया उनमें शिवराज सिंह चौहान भी शामिल था। इसके बाद शिवराज ने लगातार पार्टी को मजबूत करने का काम किया। 

सत्ता में पहला कदम

लगातार संघर्षों से भरे राजनैतिक जीवन का फल शिवराज को 20 वीं सदी के आखिरी दशक में मिलना शुरू हुआ।भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा क्षेत्र बुधनी से 1990 चुनाव में शिवराज को टिकट दिया। शिवराज ने भी चुनौती को स्वीकार किया, पैसे नहीं होने पर उन्होंने एक वोट - एक नोट का नारा दिया और जनता के पैसे पर पूरा चुनाव लड़ा और जीत कर विधान सभा पहुंचे। लेकिन शिवराज की किस्मत में कुछ और ही लिखा हुआ था।

 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेई ने लखनऊ और विदिशा दोनों सीट पर चुनाव लड़ा और जीता भी, शिवराज ने विदिशा सीट पर चुनाव प्रचार में बहुत मेहनत की। अटल बिहारी वाजपेई ने जब लखनऊ सीट को चुना और विदिशा सीट छोड़ दी तो विदिशा में उपचुनाव हुए, पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को टिकट दिया। शिवराज ने  चुनाव प्रचार के दौरान लगातार इतनी पदयात्रा की, कि विदिशा के लोग उन्हें "पांव-पांव वाले भैया" कहने लगे। शिवराज लोकसभा उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए और राजनैतिक गलियारों में अपनी पहचान बनाने लगे।

नव निर्वाचित सांसद शिवराज सिंह चौहान 1991 में अपनी उम्र के 32 वे साल में थे, घरवालों द्वारा शादी के लिए बनाया गया दबाव अब ज्यादा हो गया था। ऐसे समय में बहन की जिद पर शिवराज मिलते हैं महाराष्ट्र के गोंदिया की रहने वाली साधना सिंह से, दोनों एक दूसरे को पसंद आते हैं और 6 मई 1992 को दोनों विवाह के बंधन में बंध जाते हैं।

इसके बाद शिवराज 96 ,98, 99 और 2004 में हुए लोकसभा चुनावों में लगातार जीत दर्ज करते रहे और लोकसभा की विभिन्न समितियों में कार्यभार संभालते रहे।

 मध्य प्रदेश में वापसी....

 इस समय मध्यप्रदेश की राजनीति में उस वक्त सियासी उठापटक का दौर चल रहा था। 1993 से सत्ता में काबिज दिग्विजय सिंह को बीजेपी नेत्री उमा भारती ने "मिस्टर बंटाधार" का टैग देकर सत्ता से बेदखल कर दिया, और विधानसभा चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बन गई। शिवराज सिंह चौहान ने भी यह चुनाव लड़ा, लेकिन राधौगढ़ से दिग्विजय सिंह को हराना आसान नहीं था और शिवराज को अपने जीवन की पहली राजनैतिक हार का सामना करना पड़ा।

         लेकिन शिवराज की किस्मत शिवराज को वापस मध्यप्रदेश बुला रही थी तो परिस्थितियां भी वैसी बनने लगी।

    उमाभारती के नाम मुख्यमंत्री की शपथ लेने के 8 महीने बाद ही गैर जमानती वॉरंट जारी हो गया, यह वॉरंट  कर्नाटक के हुबली में हुई तिरंगा यात्रा के दंगो के लिए जारी किया गया था । केंद्रीय नेतृत्व के दवाब में उमाभारती को इस्तीफा देना पड़ा। मुख्यमंत्री बने बाबूलाल गौर लेकिन कुछ ही समय  में पार्टी में  उनके विरोध में बगावत हो गई। इसको देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराज को मध्यप्रदेश की राजनीति में वापस भेजने का फैसला कर लिया।

  शिवराज को जब मुख्यमंत्री बनाया गया तब वह अपने सरकारी आवास में सो रहे थे। दो दिन पहले ही हरियाणा के मुख्यमंत्री घोषित किए गए कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनके घर आते हैं और उन्हें बताते है कि बधाई हो आप मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हो गए हैं।

 29 नवंबर 2005 को भोपाल के जंबूरी मैदान में शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

 मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज

 शिवराज जब मुख्यमंत्री बने तो वह विदिशा से लोकसभा सांसद थे अब, जब बारी आई उनके लिए विधानसभा सीट चुनने की तो याद आई वही पुरानी सीट जिसपर शिवराज पहली बार विधायक चुने गए थे। शिवराज को वहां से टिकट मिला और शिवराज ने पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा। दो साल से जारी राजनीतिक उठापटक से बीजेपी के ऊपर लोगों का भरोसा कम होने लगा था लेकिन तब भी शिवराज बुधनी से 36 हजार वोटों से जीत जाते हैं।

मुख्यमंत्री बने शिवराज को विरासत में एक ऐसा राज्य मिला था जिसकी गिनती उस समय बीमारू राज्यों में की जाती थी।

जमीन से उठकर मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने के कारण शिवराज को हकीकत का अंदाजा था कि कहां सुधार की जरूरत है। शिवराज की यही ताकत की वजह से वह लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे।

शिवराज सिंह चौहान ने ऐसी कई योजनाएं शुरू की जिनका सीधा लाभ आम जनता तक पहुंचा पर सबसे ज्यादा प्रसिद्धि पाई "लाड़ली लक्ष्मी योजना" ने इस योजना का आलम यह रहा कि आज मध्य प्रदेश का लिंग अनुपात बढ़ गया है। इसी योजना ने शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश भर की लड़कियों और लड़कों का "मामा" बना दिया।

लोगों का प्यार बढ़ता गया और शिवराज ने 2008 और 2013 का विधानसभा चुनाव भी आसानी से जीत लिया ।

लेकिन कहते हैं ना कि राजनीति में सबकुछ इतना आसान नहीं होता जितना दिखता है। शिवराज पर सीधे तो नहीं लेकिन शिवराज मंत्रिमंडल पर भ्रष्टाचार (व्यापम, पीएमटी घोटाले) के आरोप लगने लगे । उस वक्त के राज्यपाल रामनरेश यादव का नाम भी इसमें उछला। दोषी मंत्रियों के इस्तीफे हुए, उन्हें जेल जाना पड़ा लेकिन शिवराज इसमें पाक साफ साबित हुए। लेकिन शिवराज की परेशानियों ने कम होने का नाम नहीं लिया। 2018 विधानसभा चुनाव के पहले मध्य प्रदेश में आरक्षण के मुद्दे पर दंगे भड़क जाते हैं और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री के रूप में अपने काम को करते हैं। बयानबाजी होती है और एक वर्ग नाराज हो जाता है। 2018 के चुनाव होते है और बीजेपी मामूली अंतर से चुनाव हार जाती है। बीजेपी का वोट प्रतिशत कांग्रेस से ज्यादा रहा लेकिन सीटों की संख्या कम रही और 22 सीट ऐसी रहीं जहां हार का अंतर से ज्यादा वोट नोटा को पड़े।

हार का कारण चाहे कुछ भी रहा हो लेकिन शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।

कांग्रेस के कमलनाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने लेकिन 15 महीने में ही आपसी तनातनी के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए और कांग्रेस की सरकार गिर गई।

शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में विराजमान हो गए । जो विधायक बीजेपी आए उन्होंने इस्तीफे दिए और इन सीटों पर उपचुनाव हुए, बीजेपी ने एक बार फिर बहुमत आंकड़े को छू लिया।

 बहुमत तो मिला लेकिन उसी के बाद आए कोरोना ने मुश्किलें कम नहीं होने दी शिवराज सरकार ने कोरोना को बेहतर ढंग से संभाला । 

राज्य में ये बातें चलने लगी की अगले चुनाव में बीजेपी को बहुमत मिलना मुश्किल होगा, लेकिन शिवराज तो फिर शिवराज हैं, विपक्षी नेता भी उन्हें तंज में "घोषणावीर" कहते हैं।

शिवराज ने " लाड़ली बहना योजना" शुरू कर दी जिसमें पात्र महिलाओं को एक हजार रुपए प्रति महीने देने की घोषणा की और ये राशि समय- समय पर बढ़ाने की भी घोषणा की।

राजनैतिक वनवास में शिवराज?

 2023 विधानसभा चुनावों से पहले शिवराज ने जी-तोड़ मेहनत की लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में रैली या कार्यक्रम करने की कोशिश की, एक तरफ जहां सभी सर्वे बीजेपी की हार को दर्शा रहे थे, वही मध्य प्रदेश की जनता के मन में कुछ और ही था। जब नतीजे आए तो बीजेपी पहले से कहीं ज्यादा सीटों पर जीती, बीजेपी का वोट प्रतिशत भी पहले से ज्यादा रहा, लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद नहीं दिया , शिवराज ने भी एक अनुशासित पार्टी कार्यकर्ता की  तरह इस निर्णय को स्वीकार किया और एक लाइन  " जस की तस रख दिन्ही चादरियां" कहकर मुख्यमंत्री की कुर्सी और भोपाल की बड़ी झील के पास बने मुख्यमंत्री निवास को अलविदा कह दिया ।

लेकिन लाड़ली बहना और लाड़ली लक्ष्मी का प्यार अपने भाई और मामा के लिए ऐसा उमड़ा की मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण से वापस आ रहे शिवराज के काफिले को रोक लिया गया और शिवराज को गले लगाकर बहनें रो पड़ी और साथ ही शिवराज भी फफ़क पड़े। शायद ही किसी राजनेता के लिए अपने जीवन में इससे बड़ी कोई उपलब्धि हो की 17 साल के शासन के बाद भी जनता उसे इतना प्यार देती हो।

शिवराज फिलहाल विधायक हैं और अपनी अगली राजनैतिक पारी की तैयारी में हैं, देखना यह है कि किस्मत शिवराज सिंह चौहान को किस ओर ले जाती है।

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Upendra Thapak

भारतीय जन संचार संस्थान में विद्यार्थी