प्रधानमंत्री की लक्षद्वीप यात्रा : एक पंथ 2 काज

          4 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक्स (ट्विटर) अकाउंट पर कुछ तस्वीरें साझा करते हुए लिखा कि लक्षद्वीप की खूबसूरती देखकर अभिभूत हूं, सभी देशवासी जो एडवेंचर के शौकीन हैं उन्हे लक्षद्वीप जरूर आना चाहिए। इन तस्वीरों में प्रधानमंत्री समुद्र किनारे टहलते हुए नजर आ रहे हैं वही एक और तस्वीर में वह समुद्र में ‘स्नार्कलिंग’ करते नज़र आ रहें हैं।

केरल समुद्र तट से दक्षिण-पश्चिम में 200 से 400 किलो मीटर दूर लक्षद्वीप द्वीप समूह स्तिथ है। लक्षद्वीप इस समय 35 द्वीपों का एक समूह हैं पहले इसमें 36 द्वीप थे लेकिन कुछ साल पहले एक द्वीप समुद्र में समा गया ।

आजादी के समय लक्षद्वीप के भारत में शामिल होने का भी एक दिलचस्प किस्सा है। आजादी के बाद अंग्रेज भारत को छोड़ कर चले गए,  भारत की तरफ से लक्षद्वीप को लेकर कोई सवाल नहीं था क्योंकि यह पहले से ही मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था इसीलिए भारत इसे अपना हिस्सा मानकर चल रहा था। लेकिन पाकिस्तान की नजर इस पर आई (क्योंकि यहां मुस्लिम आबादी ज्यादा थी)। पाकिस्तान ने अपनी सेना को लक्षद्वीप की तरफ भेजा। भारत को जब यह सूचना मिली तो भारतीय सेना भी लक्षद्वीप की तरफ निकलती है और वहां पहुंच कर तिरंगा झंडा फहरा देती है। पाकिस्तानी सेना वहां भारतीय झंडा देखकर वापस लौट जाती है, ऐसा कहते हैं कि भारतीय सेना केवल आधा घंटे पहले वहां पहुंची और लक्षद्वीप भारत का हिस्सा बन गया ।

   प्रधानमंत्री का दक्षिण मिशन

  हाल ही में हुए तेलांगना विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा, वहीं पिछले साल हुए कर्नाटक चुनाव में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में प्रधानमंत्री का लक्षद्वीप में मलयालम भाषी लोगों के बीच जाना और वहां पर लगभग 1600 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का शिलान्यास करना, आगामी चुनावों में  बीजेपी के लिए जमीन तैयार करने का काम करेगा।

लक्षद्वीप में ज्यादातर लोग इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं , इनकी आजीविका का मुख्य साधन कृषि,  मछली पकड़ना और पर्यटन ही है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जिस तरह से एक ब्रांड एंबेसडर के रूप में लक्षद्वीप पर्यटन का प्रचार किया गया वह आने वाले दिनों में यहाँ के लोगों के लिए आर्थिक तरक्की की वजह बन सकता है। यहां होने वाले विकास और विकास की संभावनाएं दक्षिण के अन्य राज्यों को भी प्रभावित करेंगी, जिससे आने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को दक्षिण के राज्यों में फायदे की उम्मीद होगी।

  मालदीव से बढ़ता कूटनीतिक संघर्ष

2 महीने पहले हुए चुनावो में मालदीव की जनता ने मोहम्मद मुइज्जू को राष्ट्रपति के रूप में चुना, वह अपने चाइना समर्थित रुख के लिए जाने जाते हैं। मुइज्जु ने अपना पूरा चुनावी कैंपेन ‘आउट इंडिया’ को केंद्र में रखकर किया,  वह लगातार भारतीय सेना को मालदीव से बाहर निकालने के वादों के बीच चुनाव जीते। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने अपनी चाइना समर्थित नीति को नया आयाम देते हुए मालदीव की उस परंपरा को भी तोड़ दिया जहां कोई नया राष्ट्रपति पहली विदेश यात्रा भारत की करता है। मुइज्जु पहले टर्की गए और अब चाइना जाने की तैयारी में हैं।  मालदीव भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, यहां पर चाइना की बढ़ती मौजूदगी भारत के लिए चिंता का का विषय है।

भारत लगातार मालदीव की मदद एक अच्छे पड़ोसी के नाते करता रहा है , चाहें वह 1988 का ऑपरेशन कैक्टस हो, 2014 के समय आया जलसंकट हो या फिर कोविड-19 के समय वैक्सीन के डोज भिजवाना हो।  इतना सब कुछ करने के बाद भी जब भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने लक्षद्वीप की तस्वीरें साझा की, तो मालदीव की सरकार के एक मंत्री ने उनके ऊपर नस्लीय टिप्पणी की। जिसके बाद भारतीय जनता ने मालदीव के बहिष्कार को लेकर आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया और आम जनता के साथ साथ फिल्मी और क्रिकेट सितारों ने भी भारतीय समुद्री  तटों की तस्वीरे साझा की और बॉयकॉट मालदीव का ट्रेंड चल गया।  कई भारतीयों ने अपनी आने वाली मालदीव यात्रा के टिकट्स को रद्द करके सोशल मीडिया पर शेयर भी किया।

एक डाटा के मुताबिक भारत से हर साल  लाखों लोग मालदीव घूमने के लिए जाते हैं, पिछले साल इनकी संख्या करीब 2.20 लाख थी, मालदीव की पर्यटन इंडस्ट्री में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी भारतीय पर्यटकों की है।

भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा लक्षद्वीप को मालदीव के विकल्प के रूप में रखना ही मालदीव में रहने वाले भारत विरोधियों की बौखलाहट का मुख्य कारण है।

 क्या तैयार है लक्षद्वीप?

लक्षद्वीप , मालदीव से करीब 70 किलामीटर दूर है, यहां के द्वीप मालदीव की तरह ही खूबसूरत और पर्यटन की संभावनाओं से भरपूर हैं। लेकिन लक्षद्वीप में बुनियादी संरचनाओं का काफी अभाव है, मालदीव के बराबर खड़ा होने में लक्षद्वीप को बहुत ज्यादा निवेश और सरकारी मदद की आवश्यकता होगी । साथ ही साथ हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि कही ऐसा ना हो की हम विकास की धुन में पर्यावरण पर ध्यान ही न दें। बढ़ता हुआ समुद्री जलस्तर लक्षद्वीप के लिए बहुत बड़ा खतरा है , हम पहले ही यहां एक द्वीप गवां चुके हैं।

तमाम अव्यवस्थाओं और आभावों के बीच भी हम उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार इस ओर ध्यान देगी और आने वाले कुछ ही सालों में लक्षद्वीप एक पर्यटन क्षेत्र के रूप में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाएगा। सरकार को भी यह सुनिश्चित करना होगा की लक्षद्वीप में निजी क्षेत्र भी बढ़-चढ़ कर निवेश करें , जिससे यहां की अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास हो । लक्षद्वीप की संस्कृति भी अपने आप में अद्वितीय है, यह भी पर्यटकों के आकर्षण का एक केंद्र बन सकती है।

विश्व राजनीति और घरेलू राजनीति की उठापटक के बीच प्रधानमंत्री मोदी का लक्षद्वीप जाना और लोगों को वहां आने के लिए प्रेरित करना एक ऐसा कदम है जो आने वाले कुछ समय में अगर सही दिशा में रहा तो लक्षद्वीप की किस्मत बदल सकता है। इसी प्रकार का एक प्रयोग प्रधानमंत्री द्वारा कश्मीर के ट्यूलिप गार्डन को लेकर किया गया था जिसके बाद वहां जाने वाले पर्यटकों की संख्या में अप्रत्याशित उछाल आया है,  उम्मीद है कि ऐसा ही लक्षद्वीप के साथ भी होगा ।

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Upendra Thapak

भारतीय जन संचार संस्थान में विद्यार्थी