आखिर कैसे होगा कम दिल्ली का प्रदूषण …

र साल की तरह इस साल भी दिल्ली गैस का चैंबर बनी हुई है। 21वी सदी में खड़े होकर भी हम प्रदूषण को कम करने के लिए बारिश का इंतजार करते नजर आते है। शिकागो विश्व विद्यालय की एक रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली वालो की औसत आयु 10 से 15 वर्ष प्रदूषण के कारण कम हो रही है। इस साल एयर क्वालिटी इंडेक्स अपने रिकॉर्ड स्तर को पार कर गया और प्रदूषण अपने सबसे ऊपरी स्तर पर पहुंच गया था। सभी सरकारी प्रयास इसे रोकने में नाकाम साबित हुए ।

यह बात जगजाहिर है कि सर्दियों की शुरुआत में गैस चैंबर बनती दिल्ली की इस हालत का जिम्मेदार पराली का धुंआ ही है। तमाम कानूनों और योजनाओं के बाद भी पराली जलाई जाती है और शासन प्रशासन देखने के अलावा कुछ और करता नजर नही आता है। पंजाब में जब कांग्रेस की सरकार थी तो विपक्षी दल उन पर किसानों को पराली जलाने से न रोक पाने का इल्जाम लगाते थे लेकिन अब जब वही आप पार्टी सत्ता में है तो पराली के सवाल पर बगले झांकती हुई नजर आती है। वास्तव में ये सवाल अब किसी राजनीति का रह ही नहीं गया है बल्कि ये एक इंसान की मूलभूत आवश्यकता का सवाल बन गया है , इस पर राजनीति की बजाय इस समस्या को जड़ से खत्म करने की तरफ ध्यान देना चाइए। बारिश होने के बाद आसमान साफ होने लगेगा और हम इसको भूल जाएंगे और अगले साल फिर यह समस्या अपना मुंह खोले खड़ी होगी।

आईआईटी कानपुर द्वारा कृत्रिम बरसात का एक नया विकल्प देकर एक नया ही तर्क दिया गया था , पर क्या एक मनुष्य के रूप में हम यह सोचकर असहज नही होते कि हमने अपने पर्यावरण के साथ यह क्या कर दिया हैं। हम केवल तात्कालिक लीपापोती की ओर ध्यान दे रहे हैं। जिस तरह पानी को साफ करने वाले यंत्र बनाकर हमने नदियों को अकेला छोड़ दिया है।

एनजीटी और सरकारें केवल किसानों पर आरोप लगाकर या आतिशबाजी पर बैन लगाकर इससे इतिश्री नहीं कर सकती और ना ही गाड़ियों से पानी छिड़क कर या ऑड-इवन को लागू करके किया जा सकता है।

पिछले कई सालों में हर साल प्रदूषण अपना विकराल रूप लिए सामने खड़ा नजर आता है और सरकारें आरोप प्रत्यारोप में लगी रहती है।

20वी सदी में यही हालत अमेरिका और यूरोप की थी। लंदन का ग्रेट स्मॉग हो या अमेरिका के डोनेरा स्मॉग की घटना इन घटनाओं ने पश्चिम को इसके प्रति सचेत किया था, इसके बाद तमाम कानूनों को बनाकर उनमें समय दर समय संशोधन करके उन्हें वैज्ञानिक तरीके से लागू किया गया और आज अमेरिका और यूरोप इस समस्या से बहुत हद तक मुक्त है।

भारत की समस्याएं थोड़ी अलग हो सकती है लेकिन प्रभाव वही हैं। कानूनों को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। किसानों को पराली के निस्तारण के लिए एक बेहतर विकल्प उपलब्ध कराना होगा जिससे कि वे अपने खेतों और पर्यावरण का ख्याल रखें। सरकार को दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को और ज्यादा बेहतर करने की आवश्यकता है। जबतक दीर्घकालिक नियम कानून या योजना लाकर इस समस्या का पूर्ण रूपेण समाधान नहीं किया जाता, तबतक कृत्रिम वर्षा वाला मार्ग खुला ही है लेकिन हम यह ध्यान रखना होगा की यह समाधान नहीं है केवल तात्कालिक उपाय है, जब तक इस समस्या का संपूर्ण समाधान नहीं हो जाता तब तक हमारे प्रयास रुकने नही चाहिए।

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Upendra Thapak

भारतीय जन संचार संस्थान में विद्यार्थी